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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 5 जनवरी 2024

के. विक्रम राव

     फ्रीकी स्वतंत्रता सेनानी और अदम्य फोटो पत्रकार पीटर मगुबेन के गत दिनों निधन से वैश्विक संघर्ष का एक अनुच्छेद समाप्त हो गया। नेल्सन मंडेला का यह निजी फोटोग्राफर उस अंग्रेज कवि विलियम ब्लैक की पंक्तियां अनायास याद दिलाता है : “मैं काला हूं, पर मेरी आत्मा सफेद है।” एक अश्वेत बालक की यह पुकार थी। पीटर जिनकी आयु 91 वर्ष की थी ने आजीवन गोरे उपनिवेशवादियों के जुल्म सहे। इसमें 586 दिन तन्हा कोठरी में कैद भी शामिल है।

     हम श्रमजीवी पत्रकार पीटर को याद रखते हैं क्योंकि उन्होंने अपने कैमरे को एक बंदूक की तरह प्रयोग किया। शूट किया क्लिक द्वारा, गोली नहीं। हम मानते हैं कि हमारे हजार शब्दों से कई गुना अधिक प्रभावी एक फोटो होता है। खबर को महत्वपूर्ण बना देता है।

     पीटर ने दक्षिण अफ्रीका का वह जुल्मी दौर देखा जिसे महात्मा गांधी ने गत सदी के प्रारंभ में उजागर किया था। वे लड़े थे, आजादी के लिए। उसी गांधीवादी आंदोलन के ही एक आयाम थे यह फोटो-पत्रकार। कालो पर गोरे शासकों के अत्याचारों की फोटो लेने में पीटर ने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल किया। कभी तो वे कैमरा को अपनी खोखली डबल रोटी में दबाकर चित्र लेते रहे थे। एकदा बाइबिल किताब के आवरण के भीतर छिपाकर कैमरा रखा था। अन्य प्रयोग भी किए। कभी दूध के कार्टन की दफ्ती में छिपाया। हर बार बढ़िया मार्मिक फोटो लेते रहे।

     पीटर की मशहूर फोटो में है 21 मार्च 1960 की शार्पविले पुलिस थाने की। इसमें सात हजार प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलीबारी हुई थी। करीब 70 लाशें बिछ गई थीं। उनकी अद्भुत फोटों थी जब नेल्सन मंडेला पर रिवोनिया नगर में गोरे शासको ने मुकदमा चलाया था। बात 1963-64 की है। अफ्रीका राष्ट्रीय कांग्रेस पर षड्यंत्र और विद्रोह का आरोप था। मंडेला मुख्य अभियुक्त थे। मंडेला को कुल मिलाकर 27 वर्षों तक जेल में रखा गया था। पीटर ने उनकी यादगार फोटो ली थी।

     मगर पीटर की गज़ब की फोटो थी जब उन्होंने जोहान्सबर्ग उपनगर में पार्क के बेंच पर बैठी एक श्वेत लड़की और पीछे खड़ी उसकी अश्वेत आया की। इसका शीर्षक था : “केवल गोरों के लिए।” यह पुरस्कृत चित्र था।

     पीटर का खुद बयान है कि फोटोग्राफर के रूप में क्या-क्या झेला उन्होंने। एक  बार उन्होंने बताया : “मुझे कई बार गिरफ्तार किया गया और पुलिस ने मुझे बहुत मारा-पीटा। उन लोगों ने एक बार मेरी नाक तोड़ दी। मैंने अपनी एक फिल्म को प्रदर्शित करने और छवि खराब करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने मुझे 1974 में गिरफ्तार कर लिया और 586 दिनों के लिए एकांत कारावास में रखा गया। यह नहीं बताया गया था कि रंगभेदी दक्षिण अफ़्रीका में मुझे एकान्त में ले जा रहे हैं। केवल तभी पता चला जब मैं अपनी कोठरी में दाल दिया गया। कोई आगंतुक नहीं मिले। एकमात्र व्यक्ति जिसे मैंने देखा वह गार्ड था, जो कहता था: "मुझसे बात मत करो।" लेकिन मुझे पता था कि वहां मुझसे भी बदतर हालत में लोग थे। नीचे की कोठरियों में नामीबियाई लोगों को हर दिन, हर रात पीटा जाता था। सौभाग्य से मुझे पीटा नहीं गया, क्योंकि वे जानते थे कि मेरा अखबार मेरी तलाश कर रहा था। वे बस मुझे बंद कर सकते थे। खिड़की पर एक चिड़िया आकर बैठती। जब मैं खड़ा होता तो वह उड़ जाता। मैं बस यही सोच सकता था कि मैं वह पक्षी बनना कितना चाहता था।”

     पीटर को 1975 के अंत में रिहा कर दिया गया। लेकिन पाँच साल के लिए तस्वीरें लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पुलिस को बताए बिना वे अपना घर नहीं छोड़ सकते थे। पीटर ने कहा : “जब उन्होंने मुझे रिहा किया, तो मैंने खुद से कहा: “मैं इन लोगों के नियमों का पालन नहीं करूंगा। मैं तस्वीरें ले रहा हूं, कोई अपराध नहीं कर रहा हूं। इसलिए 1976 में, जब सोवतो विद्रोह हुआ, मैं अपना कैमरा और प्रतिशोध लेने गया। मेरी तस्वीरों की वजह से पूरी दुनिया ने देखा कि क्या हो रहा था।”

     दक्षिण अफ्रीकी शासन के खेल, कला और संस्कृति विभाग ने हाल ही में डॉ. मगुबेन को मान्यता दी है। दक्षिण अफ्रीका के रचनात्मक और सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गजों में स्थान दिया। डॉ. मगुबेन को 2017 में सिल्वर में नेशनल ऑर्डर ऑफ लूथुली से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई और सम्मान प्राप्त हुए।

     स्वाधीन अफ्रीका सरकार ने कहा : "डॉ. पीटर मैगुबेन एक उत्कृष्ट फोटो जर्नलिस्ट और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने निडर होकर रंगभेद के अन्यायों का दस्तावेजीकरण किया। डॉ. मैगुबेन ने दमनकारी श्वेत शासन के खिलाफ कभी पीछे नहीं हटते हुए, विरोध के एक तरीके के रूप में अपने कैमरे का इस्तेमाल किया। इस वर्ष दक्षिण अफ्रीका की जनता आजादी के 30 साल पूरे होने का जश्न मना रही हैं। इस आजादी में डॉ. मगुबेन की भूमिका को याद रखना और उसका जश्न मनाना महत्वपूर्ण है। डॉ. मगुबेन द्वारा निभाई गई भूमिका के कारण ही दक्षिण अफ्रीका आज एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है। यह विरासत कायम रहनी चाहिए।"

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